Surdas Ke Dohe
दोहा 1
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
ख्याल परै मोहि दूध-भात कौ, भेखन कहां ते आयो॥
दोहा 2
मधुबन तुम क्यों रहत हरि बिनु।
मोरपंख सिर मुकुट बिराजत, हरि बिनु कौन रखत सिरधिनु॥
दोहा 3
जाके बल राम रघुराई, ताहि कहां ते भय खलु भाई।
राम नाम बल रूप अपारा, सुरदास हिय हरि चरना सारा॥
दोहा 4
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
दोहा 5
कौन कहे गोपी हारि गयी, राधा हारि गयी सोई।
जो जन जानत रस सखा, सुनि हरि नेह की गोई॥
दोहा 6
प्रेम प्रेम सब कोई कहत है, प्रेम न जाने कोय।
जाको अंतर प्रेम है, प्रेम कहावत सोय॥
दोहा 7
जो तुम तोरे राम कह, मैं तोरे राम कहूंगा।
तुम से कहा और कह, मुझसे कहा और कहूंगा॥
दोहा 8
राधा ढूंढत जुग भयो, नटखट कृष्ण कलेस।
कहि सुरदास कौन जतन कर, सोय लखा अविलेस॥
दोहा 9
मन मेरा मंदिर, चरण तेरे देवता।
तेरी जोत से जोति जगाओ, प्रभु दर्शन दो अब॥
दोहा 10
सुर की बानी मूकन हित, सुर ज्यों बचन उचार।
चरण कमल सुरदास हिय, तजि संसार विकार॥
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दोहा 11
- हरि बिनु रहत न एक घड़ी, यह जानत सब कोय।
- सुर दास हरि चरन बिन, झूठे होहि सखि सोय॥
दोहा 12
- मन अनन्त चंचल चपल, अनन्त को भयो पसार।
- सुरदास हरि चरण में, लघु तनु राखत सार॥
दोहा 13
- अपने मन में झांक कर, देख सुरदास।
- राम बिनु सुख ना मिले, न हो सविनय विनाश॥
दोहा 14
- सब सुख लीन हो जाय, दुख में होय समाय।
- सुरदास हरि बिनु, और नहीं उपाय॥
दोहा 15
- प्रेम पंथ पर सखि, सब जानत है।
- सुरदास कहे, राम प्रेम तजत है॥
दोहा 16
- चंचलता को छोड़ कर, राम को ध्याव।
- सुरदास कहे, हरि चरण लखाव॥
दोहा 17
- कहत सदा भगवान से, राम कृपा की आस।
- सुरदास अब हरि बिना, कौन होय त्रास॥
दोहा 18
- हरि चरण में रहत, सुख की निधि पाए।
- सुरदास बिन हरि चरण, झूठे हो सब लोग॥
दोहा 19
- हरि भजन बिना, नहीं मिलै संतोख।
- सुरदास कहे, कर सदा हरि भोग॥
दोहा 20
- मीरा ने जो प्रेम किया, राम नाम की आस।
- सुरदास कहे, कर सदा हरि पास॥
दोहा 21
- राम नाम की बानी, सुनो सखा प्रेम।
- सुरदास कहे, राम बिना ना भजै कोय॥
दोहा 22
- हरि भक्ति में डूब कर, जीवन को संवार।
- सुरदास कहे, राम बिनु सब व्यर्थ विचार॥
दोहा 23
- मोह माया को छोड़ कर, राम में रम जाओ।
- सुरदास कहे, हरि चरण में पाओ॥
दोहा 24
- राम नाम की महिमा, सखा सुन लो ध्यान।
- सुरदास कहे, प्रेम से भर लो राम की पहचान॥
दोहा 25
- हरि चरण में रहकर, जीवन को सफल बनाओ।
- सुरदास कहे, हरि के गुण गाओ॥
दोहा 26
- मन को शांत कर, हरि में रमण करो।
- सुरदास कहे, हरि नाम जप करो॥
दोहा 27
- प्रेम का मर्म, हरि में खोजो।
- सुरदास कहे, हरि चरण में डूबो॥
दोहा 28
- जीवन के सभी दुख, हरि के चरणों में मिटाओ।
- सुरदास कहे, हरि नाम जपते जाओ॥
दोहा 29
- सच्चा सुख वही, जो हरि के चरणों में पाओ।
- सुरदास कहे, हरि नाम की सुधि ले जाओ॥
दोहा 30
- राम नाम की ज्योति, मन में जगाओ।
- सुरदास कहे, हरि भजन से जीवन सवारो॥
दोहा 31
- सत्य प्रेम की राह में, चलो हरि के साथ।
- सुरदास कहे, हरि के बिना जीवन अधूरा॥
दोहा 32
- हरि के बिना, कौन देता है सुख।
- सुरदास कहे, हरि चरण की शरण लो॥
दोहा 33
- राम के चरणों में, मन की शांति पाओ।
- सुरदास कहे, राम भक्ति से जीवन सवारो॥
दोहा 34
- हरि के बिना, जीवन व्यर्थ है।
- सुरदास कहे, हरि भजन में मन लगाओ॥
दोहा 35
- हरि के प्रेम में, जीवन सफल होता है।
- सुरदास कहे, हरि नाम से मन को रमाओ॥
दोहा 36
- जीवन की सारी कठिनाइयाँ, हरि भक्ति से मिटती हैं।
- सुरदास कहे, हरि भजन से सब संकट टलते हैं॥
दोहा 37
- हरि के चरणों में, मन की शांति मिले।
- सुरदास कहे, हरि की शरण में जाओ॥
दोहा 38
- प्रेम की सच्ची राह, हरि के चरणों में है।
- सुरदास कहे, हरि भक्ति से जीवन सवारो॥
दोहा 39
- हरि के बिना, जीवन अधूरा लगता है।
- सुरदास कहे, हरि की महिमा गाओ॥
दोहा 40
- हरि के प्रेम में, जीवन सफल बनाओ।
- सुरदास कहे, हरि के चरणों में रम जाओ॥
Surdas: The Bhakti Poet of Divine Devotion
Surdas, one of the most revered poets in Indian history, is celebrated for his deep devotion to Lord Krishna. Born in the 15th century, Surdas was a blind poet whose spiritual vision surpassed the limitations of physical sight. His poetry, primarily composed in Braj Bhasha, beautifully captures the essence of devotion, love, and the spiritual yearning for union with the divine.
Surdas is best known for his Sur Sagar (“Ocean of Melody”), a collection of poems that vividly describe the life and exploits of Lord Krishna. His dohas (couplets) and pads (verses) are not just poetic expressions but also serve as spiritual teachings, guiding the devotee on the path of Bhakti (devotion).
Key Themes in Surdas’s Poetry
- Devotion to Lord Krishna: Surdas’s poetry is centered around the love and devotion for Krishna. His verses describe the various stages of Krishna’s life, from his playful childhood in Gokul to his divine exploits as an adult. These poems often depict Krishna’s interactions with the Gopis, his divine play (Lila), and the deep bond between the Lord and his devotees.
- The Pain of Separation: Another significant theme in Surdas’s poetry is the Viraha, or the pain of separation from the beloved. This theme is explored through the emotional expressions of Krishna’s mother Yashoda, the Gopis, and even Radha, who experiences the anguish of being away from Krishna. Surdas’s dohas eloquently convey the intense longing and spiritual pain of the soul separated from the divine.
- Simple Yet Profound Spirituality: Surdas’s works are known for their simplicity and accessibility. Despite being simple in language, his dohas are deeply philosophical and resonate with profound spiritual truths. They emphasize the importance of surrender to the divine, the futility of ego, and the transient nature of worldly pleasures.
- Universal Love and Compassion: Surdas’s poetry is a testament to universal love and compassion. He urges people to rise above social distinctions and embrace the love of God, which transcends all boundaries. His teachings encourage the worship of God through pure devotion, regardless of one’s caste, creed, or social status.
Legacy of Surdas
Surdas’s contributions to Indian literature and spirituality are immense. His compositions have not only enriched the Bhakti movement but have also played a crucial role in shaping the devotional practices centered around Krishna. His verses continue to be sung and revered in temples and homes across India.
The enduring legacy of Surdas lies in the timeless appeal of his poetry. His words, filled with divine love and wisdom, continue to inspire and uplift devotees, scholars, and readers alike, transcending the barriers of time and geography.
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